इस अध्याय में हम भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक देखेंगें। मुख्य तौर पर इसके क्षेत्रक काफी है। जैसे – प्राथमिक क्षेत्रक, द्वितीयक क्षेत्रक, तृतीयक क्षेत्रक। प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि क्षेत्रक भी कहते है। ऐसा इसलिए कि इसमें हमारे द्वारा निर्मित सभी उत्पाद आते है। उदाहरण के तौर पर कृषि, डेयरी, मत्सय आदि।
द्वितीयक क्षेत्रक को औद्योगिक क्षेत्रक कहा जाता है। ऐसा इसलिए कि इसमें आने वाली वस्तुएं सीधे प्रकृति से प्राप्त नहीं की जाती है। बल्कि कच्चे माल से निर्मित की जाती है। निर्माण का यह कार्य उद्योगों में किया जाता है। इसीलिए इसे औद्योगिक क्षेत्रक कहते है। मिट्टी से ईंट का निर्माण भी इसमें आता है।
तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक कहते है। क्यों कि आपने माल निर्मित तो कर लिया। कच्चा माल भी आपको कृषि क्षेत्रक से मिल गया। लेकिन जो माल तैयार हुआ है। उसको बाजार तक भी पहुंचाना होता है। जो कार्य परिवहन के द्वारा संपादित किया जाता है। इस दौरान इसका भण्डारण भी किया जाता है।
ये सभी सेवा क्षेत्रक के अर्न्तगत आता है। ये प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में सहायता नहीं करते है। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक गतिविधियों में यह योगदान देते है। इन्टरनेट, सॉफ्टवेयर आदि।
अतिरिक्त रोजगार का सृजन किस प्रकार से किया जा सकता है। वर्तमान में देश में काम का अधिकार लागु किया गया है। इसी के तहत मनरेगा भी कार्यशील है। जो वर्ष 2005 से देश के हिस्सों में शुरू है। वर्तमान में लगभग 526 जिलों में योजना लागु है।
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